I always end up like this— comforting myself and telling mys
जब काँटों में फूल उगा देखा
फ़क़्त ज़हनी तवाज़ुन से निकलती हैं तदबीरें,
I dreamt of the night we danced beneath the moon’s tender li
नववर्ष की बधाइयां शुभकामनाएं
दुख है दर्द भी है मगर मरहम नहीं है
कल है हमारा
singh kunwar sarvendra vikram
#पितरों की आशीष
वेदप्रकाश लाम्बा लाम्बा जी
वक्त सबको पहचानने की काबिलियत देता है,
रफ़्ता रफ़्ता (एक नई ग़ज़ल)
मुंशी प्रेमचंद जी.....(को उनके जन्मदिन पर कोटि कोटि नमन)
काव्य_दोष_(जिनको_दोहा_छंद_में_प्रमुखता_से_दूर_रखने_ का_ प्रयास_करना_चाहिए)*
भजन: रामचंद्र कह गए सिया से
एक होस्टल कैंटीन में रोज़-रोज़
जैसे एक सब्जी बेचने वाला बिना कहे उस सब्जी की थैली में चंद म