■ वैचारिक भड़ास…!
■ “वक्ता” से “बकता” तक
बहुत लोग हैं जो दिन-रात कुछ न कुछ बोलने के लिए सोचते रहते हैं और बोलने का कोई अवसर नहीं गंवाते। इसके बाद एक समय आता है जब उनकी बात का मूल्य उनकी अपनी विश्वसनीयता की तरह घटता जाता है। अंततः वह समय भी आ जाता है, जब लोग उन्हें “वक्ता” की जगह “बकता” समझा जाने लगता है। मतलब यह कि उपयोगिता ह्रास नियम बेमतलब की बात करने वालों पर भी लागू होता है। इसलिए ऊंची-ऊंची और लंबी-लंबी फेंकना बंद करने में ही सार है।
【प्रणय प्रभात】