■ लघु व्यंग्य :-
#लघुव्यंग्य :-
■ आंखन देखी, कागद लेखी…!!
【प्रणय प्रभात】
रोशनी से जगमग एक बड़े से मैरिज गार्डन में चलता प्रीतिभोज। भोज में शामिल कथित भद्र परिवार की दो ज़रूरत से ज़्यादा सजी-धजी महिलाएं। खुरदुरे चेहरे पर पुट्टी स्टाइल में जम कर थोपा गया फाउंडेशन। उस पर गाढ़े मेकअप की दोहरी परत। चमकदार वस्त्राभूषण और मुख-मंडल पर नृत्य करता घमंड।
दोनों के साथ मे एक मरियल सी राजकुमारी। राजकुमारी बोले तो एंजिल। एंजिल यानि पापा की स्वयम्भू परी। सिल्वर कलर के गाउन में सुसज्जित। लिपाई-पुताई और रंग-रोगन वाले अजब से रुख पर ग़ज़ब की हेकड़ी। तीनों तीन कुर्सियों पर विराजमान। बीच मे तीन मखमली गद्दीदार कुर्सियों पर रखीं खाने की प्लेटें। प्लेटों में रोडवेज की बस में सवारी की तरह भरे तरह तरह के व्यंजनों के ढेर। कुर्सी पर गिरने को बेताब पुलाव और साथ में छलांग मारने पर आमादा तले हुए पापड़ की कतरनें।
छह कुर्सियों पर प्लेटों सहित काबिज़ तीनों हस्तियों के पास ही तीन ख़ाली कुर्सियां अलग से मौजूद। लगभग आतंकियों के क़ब्ज़े वाले बंधकों की तरह। परिवार या पहचान के उन लोगों के लिए एडवांस में रिजर्व, जिनका गार्डन यानि परिसर में अता-पता तक नहीं।
एक अदद कुर्सी की तलाश में जूठन से सनी तमाम कुर्सियों को मायूसी से ताक़ते हुए बाक़ी लोग। कुछ ही देर में ऐसा लगने लगा मानो अन्य अतिथि ट्रेन के रिज़र्वेशन वाले कंपार्टमेंट में जनरल का टिकिट लेकर घुस आए हों। जिसकी सज़ा उन्हें खड़े-खड़े खाने के रूप में मिली हो।
इस श्रेणी के अतिथि कल को आप भी हो सकते हैं। क्योंकि देव-उठान के बाद प्रीतिभोजों की बाढ़ आनी ही है। जिसमें आप ही मेहमान नहीं होंगे। राजकुमारी और रानी-महारानी की तिकड़ी भी मौजूद होगी। संभव है कि आबादी के विस्फोट के बाद ऐसी बेशर्म और बेहूदी तिकड़ी-चौकड़ी की तादाद दर्जनों में हो।
तो रहिए तैयार ऐसी बेक़द्री से जूझने के लिए। यदि लाखों के तामझाम वाले गढ़भोज आपके आगमन की प्रतीक्षा में हैं। अब या तो गधे-घोडे की तरह खड़े-खड़े चरने की आदत डालिए, या फिर गाय-बकरी जैसे चलते-फिरते पेट भरने की। अगर ऐसा न कर पाएं तो सार्वजनिक छीछालेदर से बचने के लिए फोल्डिंग चेयर घर से ले जाएं। ताकि सुकून से कुछ खा-पी सकें। बिना किसी कष्ट या क्लेश के। राधे-राधे।।
■प्रणय प्रभात■
●संपादक/न्यूज़&व्यूज़●
श्योपुर (मध्यप्रदेश)