■ नैसर्गिक न्याय
#लघुकथा-
■ मकड़ी की भूख….
【प्रणय प्रभात】
उसकी भुझ एक एक कर सबको निगलती जा रही थी। उसका बुना जाल लगातार बढ़ता जा रहा था। जो एक दिन उसे ही निगल गया। शायद यही नैसर्गिक न्याय था।
#लघुकथा-
■ मकड़ी की भूख….
【प्रणय प्रभात】
उसकी भुझ एक एक कर सबको निगलती जा रही थी। उसका बुना जाल लगातार बढ़ता जा रहा था। जो एक दिन उसे ही निगल गया। शायद यही नैसर्गिक न्याय था।