■ नहले पे दहला…
#लघु_व्यंग्य-
■ अगला ‘सर” तो बंदा “पैर”
★ छोटा आकार, बड़ा प्रहार
【प्रणय प्रभात】
श्रीमती जी के मोबाइल की रिंग बजी। वो उस समय संध्या-वंदन में थीं। मजबूरन कॉल मुझे रिसीव करना पड़ा। मेरी हलो के बाद न कोई दुआ न सलाम। बस एक सवाल- “मेम हैं…?”
मैने श्रीमती जी के व्यस्त होने की जानकारी दी। चूंकि कॉल नम्बर से थी, लिहाजा नाम भी पूछ बैठा। बड़े अभिमानी स्वर में जवाब मिला- “हम अजय सर। और आप…?” मैने कहा- “जी! मैं प्रणय पैर…!!”
चाहता तो अपना परिचय ख़ुद को ख़ुद “सर” कहने वाले महानुभाव को “सरताज़” के रूप में भी दे सकता था। मगर मैंने ऐसा नहीं किया। जानते हैं क्यों…? आप कहाँ से जानेंगे। चलिए, मैं ही बता देता हूँ।
मुझे पता था कि अगर कोई सुरसा जैसा मुंह फाड़े तो होड़ का कोई अर्थ नहीं। बेहतर है मच्छर बन कर मुंह मे घुसना और कान से निकल जाना। वैसे भी हनुमान जी महाराज सिखा गए हैं कि बड़ा प्रहार करना हो तो छोटा बनने में ही सार है। फिर सामने चाहे लंकिनी हो या दशानन। जय राम जी की।।