■ धिक्कार….
■ धिक्कार नामुरादों…!
“कथनी और करनी” में ज़मीन-आसमान जितना फ़र्क़ रखने वाले लोगों और उनके संगठनों की मजाल नहीं कि बिना सियासी संरक्षण व समथन के उन्माद फैला सकें। यदि यह सच नहीं तो राष्ट्रीय महापर्व से पहले राष्ट्रीय राजधानी को उन्माद का अड्डा बनाने वालों को दम कौन दे रहा है? बताए सरकार, जो दावे दुश्मन देशों से निपटने के करती है और घरेलू गिरोहों के सामने नतमस्तक दिखती है। क्या यही है देश की संप्रभुता और रणनीतिक ताक़त…?
【प्रणय प्रभात】