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4 Mar 2023 · 1 min read

■ दोहे फागुन के…

■ दोहे फागुन के :-
【प्रणय प्रभात】

● बरसाने में राधिका,
गोकुल में घनश्याम।
जब तक दोनों ना मिलें,
फ़ीके रंग तमाम।।

● मादक सा मौसम हुआ,
अलसाई सी देह।
सबको वश में कर रहा,
वही फागुनी नेह।।

● चटख रंग की चाह थी,
पूरी हुई तलाश।
रंगत देने पर्व को
ख़ुद खिल गए पलाश।।

● होली का आनंद लें,
राग-द्वेष को भूल।
नेह निमंत्रण दे रहे,
ये टेसू के फूल।।

● होली हो उल्लास की,
उपजे नई उमंग।
तन से मन तक जा रमें,
नेह-प्रेम के रंग।।

● धूप नुकीली सी लगे,
मीठी लगे बयार।
फागुन रंगत पा रहा,
बता रहा कचनार।।

● होली का वंदन करें,
जन-जीवन के संग।
क़ुदरत ने बिखरा दिए,
क़दम-क़दम पे रंग।।

● बस उस दिन हो जाएगा,
अपना हर दिन फाग।
श्यामल भू के शीश पर,
हो केसरिया पाग।।

★प्रणय प्रभात★
श्योपुर (मध्यप्रदेश)

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