■ दोहे फागुन के…
■ दोहे फागुन के :-
【प्रणय प्रभात】
● बरसाने में राधिका,
गोकुल में घनश्याम।
जब तक दोनों ना मिलें,
फ़ीके रंग तमाम।।
● मादक सा मौसम हुआ,
अलसाई सी देह।
सबको वश में कर रहा,
वही फागुनी नेह।।
● चटख रंग की चाह थी,
पूरी हुई तलाश।
रंगत देने पर्व को
ख़ुद खिल गए पलाश।।
● होली का आनंद लें,
राग-द्वेष को भूल।
नेह निमंत्रण दे रहे,
ये टेसू के फूल।।
● होली हो उल्लास की,
उपजे नई उमंग।
तन से मन तक जा रमें,
नेह-प्रेम के रंग।।
● धूप नुकीली सी लगे,
मीठी लगे बयार।
फागुन रंगत पा रहा,
बता रहा कचनार।।
● होली का वंदन करें,
जन-जीवन के संग।
क़ुदरत ने बिखरा दिए,
क़दम-क़दम पे रंग।।
● बस उस दिन हो जाएगा,
अपना हर दिन फाग।
श्यामल भू के शीश पर,
हो केसरिया पाग।।
★प्रणय प्रभात★
श्योपुर (मध्यप्रदेश)