विचार
अनिल कुमार गुप्ता 'अंजुम'
खतरनाक आदमी / मुसाफ़िर बैठा
हम तब तक किसी की प्रॉब्लम नहीं बनते..
तारीफ क्या करूं,तुम्हारे शबाब की
(9) डूब आया मैं लहरों में !
न वो बेवफ़ा, न हम बेवफ़ा-
दो अपरिचित आत्माओं का मिलन
दिन रात जैसे जैसे बदलेंगे
23/157.*छत्तीसगढ़ी पूर्णिका*
ये दुनियाँ है बाबुल का घर
फूल और भी तो बहुत है, महकाने को जिंदगी
मुझे अब भी घर लौटने की चाहत नहीं है साकी,
जब भी किसी संस्था में समर्पित व्यक्ति को झूठ और छल के हथियार
जनक छन्द के भेद
महावीर उत्तरांचली • Mahavir Uttranchali