■ तेवरी-
#देसी_ग़ज़ल-
■ खोपड़ी अपनी पराए बाल हैं।।
【प्रणय प्रभात】
● उसने जो पूछा कि कैसे हाल हैं।
हमने खुल कर कह दिया बेहाल हैं।।
● इस नदी में नीर अब बाक़ी नहीं।
इसमें केवल रेत है घड़ियाल हैं।।
● लोग सब चाणक्य जिनको कह रहे।
दरअसल वो सब गुरूघण्टाल हैं।।
● न्याय की तलवार है अब भोथरी।
पैंतरे अपराधियों की ढाल हैं।।
● दर्द के सब लोग आदी हो चुके।
अब दिलासे जान के जंजाल हैं।।
● आज गहरी सोच में हैं सुर सभी।
लस्त लय तो बेसुधी में ताल हैं।।
● कल के कलुआ को सियासत फल गई।
कोयले से गाल थे अब लाल हैं।।
● भेड़ की खालों में सारे भेड़िए।
वो जो असली दिख रहे नक़्क़ाल हैं।।
● भोज कंगाली पे अपनीं रो रहे।
कल के गंगू आज मालामाल हैं।।
● मुर्गियों के दाम पीछे रह गए।
दोगुनी मंहगी हुई अब दाल हैं।।
● बांध पगड़ी घूमते ईमान की।
कल सरीखे आज तक बदहाल हैं।।
● जेब में कंघे लिए गंजे दिखे।
खोपड़ी अपनी पराए बाल हैं।।
● वो किसी को भी मदद देंगे नहीं।
बंदिशों में इन दिनों के कंगाल हैं।।
■प्रणय प्रभात■
●संपादक/न्यूज़&व्यूज़●
श्योपुर (मध्यप्रदेश)