■ ज्यादा कौन लिखे?
■ दो मिसालें बहुत…
“कभी अमृत समझ विष को सहज स्वीकार करता है।
कभी कच्चा घड़ा लेकर नदी को पार करता है।।
जिसे हम प्रेम कहते हैं दिखावों में नहीं पलता।
वो अक़्सर कल्पना में रूप का श्रृंगार करता है।।”
पावन प्रेम के नाम पर अपावन वासना की उपासना करने वाली एक पूरी नस्ल के लिए बस दो मिसालें ही बहुत हैं। जिन्हें समझना होगा दो उदाहरणों से समझ जाएंगे। जिन्हें नहीं समझना उन्हें समझाने का कोई अर्थ नहीं। उन्हें समझाने का ठेका समय और हालात के पाश है।।
【प्रणय प्रभात】