■// जुबां-ए-विराज़ //■
अहल-ए-दिल अबभी वही है
मुझमे शख्स रहता अबभी वही है।
उसने वक़्त न दिया तो उसे ग़लत समझूँ
बात ये बिल्कुल भी सही नही है।
न दे सके कोई बहुत प्यार तो उससे मुहँ मोड़ लो,
मेरे दोस्त मोहोब्बत में ऐसा कहीं लिखा तो नही है।
और फिर मैं मैं तो “विराज़” हूँ मैं दग़ा कर जाऊँ,
ऐसा तो कभी मुमकिन ही नही है।