■ अफ़वाह गैंग : गुमराह जीव
#सम_सामयिक
■ साकार होती पुरानी कहानी
【प्रणय प्रभात】
बचपन मे एक कहानी पढ़ी थी। जो आप सब ने भी ज़रूर पढ़ी होगी। वही, वेवक़ूफ़ खरगोश वाली। खरगोश के सिर पर नारियल गिरता है। वो उठ कर भागता है। यह कहते हुए कि दुनिया ख़त्म होने वाली है। बाक़ी जानवर भी सदमे में आ जाते हैं। भागने वालों की क़तार बढ़ती जाती है। आख़िर में पता चलता है कि यह सब एक अफ़वाह थी।
यह बेहद पुरानी व पूरी तरह काल्पनिक कहानी फ़िलहाल जंगल-राज जैसे हालात में आए दिन साकार हो रही है। जहां हर प्रजाति के जानवर अफ़वाह से गुमराह होने के आदी हो चुके हैं। लग रहे हैं बिना अक़ल लगाए, एक-दूसरे की नक़ल के चक्कर में।
झूठे खरगोश कितने हैं, कौन-कौन है, कहाँ-कहाँ हैं सबको पता है। सभी को पता है उनकी मंशा और मानसिकता।
इसके बावजूद हैरत की बात यह है कि अफ़वाह को सच मान कर दहशत में आने वाले बेनागा किसी न किसी बहाने सड़कों पर सक्रिय दिख रहे हैं।
सिस्टम सब जान कर भी पता नहीं क्यों लचर और कातर बना हुआ है। जंगल के बाक़ी जीव बेसबब भागते-दौड़ते जानवरों को देख कर गफ़लत में हैं। इनमें जितने शातिर हैं, वो सड़क पर हैं और उदासीन अपनी गुफाओं में घुसे बैठे हैं।
ईश्वर भूमिगत यानि कंदराओं में छुपे बैठे जीवों को सच को समझने और भ्रम के प्रतिकार की दिशा में कुछ कर गुज़रने का अवसर दे। थोड़ा-बहुत साहस भी। ताकि जंगल का अमन-चैन बरक़रार रह सके। जिसके लिए खरगोशी अफ़वाह से प्रेरित जानवरों और बेमतलब के हड़कम्प से आज़िज़ आए जीवों की तादाद में संतुलन ज़रूरी है। वरना झूठे खरगोश अफ़वाहों का बाज़ार बेनागा गर्म बनाते रहेंगे।