■ चिंतन / मूल्य मानव का…..
#जीवन_की_सच्चाई:
■ मृत्यु के बाद मूल्य चंद रुपए
【प्रणय प्रभात】
सामान्यतः जीवन को अमूल्य माना जाता है और मानवीय देह को ईश्वरीय वरदान। इस सनातन सत्य और तथ्य की सार्थकता तब है जब जीवन शाश्वत मूल्यों पर केंद्रित और मानवीय गुणों से ओतप्रोत हो। जिनकी उपेक्षा मानव लगातार करता आ रहा है। नैतिकता, सदाचार और मानवीय मूल्यों के बिना मानव जीवन का कोई मूल्य नहीं। उस देह का मूल्य भी महज चंद रुपए, जिस पर इंसान जीवन का जोश रहने तक दम्भ करता है। जी हां, भौतिक युग की सच्चाई यही है, जिसे हम इस तथ्य से बखूबी समझ सकते हैं। जब किसी मनुष्य की मृत्यु हो जाती है तो उसकी अंत्येष्टि कर दी जाती है। जीते जी करोड़ों के अंग रखने वाली बहुमूल्य मानवीय देह
निष्प्राण होने के बाद मिट्टी हो जाती है। निष्प्राण देह के जल जाने के बाद वो राख’ में बदल जाता है। इस राख (खाक़) में मात्र 25 रुपए का केल्शियम, 10 रुपए का फास्फोरस और 30 रुपए के अन्य माइक्रो न्यूटरिएण्ट्स होते हैं। मतलब मरने के बाद आदमी की ‘कीमत 65 रुपए’ से ज्यादा नहीं बचती। चाहे मरने वाला राजा हो या रंक। मतलब स्पष्ट है कि मूल्य देह नहीं आत्मा का है। उस आत्मा का, जो जीवन के मूल्य जानती हो। मरणोपरांत जीवन का मूल्य वो स्मृतियां तय करती हैं जो सुकर्म या कृतित्व कहलाती हैं। कृतित्व का सम्बंध व्यक्तित्व नहीं व्यवहार और आचार-विचार से होता है। इसे विस्मृत नहीं किया जाना चाहिए।
इसीलिए मानव मात्र को सांसारिक विलासिता, शारीरिक बल, सार्वजनिक व सामाजिक स्थिति और रूप-सौंदर्य आदि का आडम्बर व थोथा अहंकार छोड कर अपना मानव धर्म, राष्ट्र धर्म निभाना चाहिए। ताकि जिस मिट्टी में पैदा हुआ है, उसका थोड़ा सा ऋण चुका सकें और ईश्वर को बता सकें कि उसे मानव बनाना उसकी भूल नहीं थी। जीवन का वास्तविक मूल्य भी शायद यही है।
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॥ वन्दे मातरम् ॥