अंधेरों में अंधकार से ही रहा वास्ता...
मैं हिंदी में इस लिए बात करता हूं क्योंकि मेरी भाषा ही मेरे
गुब्बारे की तरह नहीं, फूल की तरह फूलना।
अजब है इश्क़ मेरा वो मेरी दुनिया की सरदार है
భారత దేశం మన పుణ్య ప్రదేశం..
डॉ गुंडाल विजय कुमार 'विजय'
*पद्म विभूषण स्वर्गीय गुलाम मुस्तफा खान साहब से दो मुलाकातें*
गीत- कभी क़िस्मत अगर रूठे...
गोपियों का विरह– प्रेम गीत
क़दमों को जिसने चलना सिखाया, उसे अग्नि जो ग्रास बना गया।
किसी के ख़्वाबों की मधुरता देखकर,
अब मैं बस रुकना चाहता हूं।