■ ग़ज़ल / रिसालों की जगह…
■ ग़ज़ल / रिसालों की जगह…
【प्रणय प्रभात】
■ अब हवालों की जगह है ना मिसालों की जगह।
चंद अख़बार हैं टेबल पे रिसालों की जगह।।
■लोग जो शब् को समझते हैं सहर से बेहतर।
उनको मिलता है अँधेरा ही उजालों की जगह।।
■ इतना छोटा था कि तानों से भर गया दामन।
अब नहीं दिल में जवाबों या सवालों की जगह।।
■ दौरे-हाज़िर में सलीक़ा है फ़क़त ख़ामोशी।
लोग लफ़्ज़ों को पकड़ते हैं ख़यालों की जगह।।
■ उनकी चाहत में है दो वक़्त की रोटी अब भी।
लोग तक़रीर लुटाते हैं निवालों की जगह।।