■ ग़ज़ल / मंज़िल_नहीं_थी
#ग़ज़ल
■ मोड़ थे मंज़िल नहीं थी…!
【प्रणय प्रभात】
★ सफ़र में मोड़ थे मंज़िल नहीं थी।
तेरी महफ़िल मेरे क़ाबिल नहीं थी।।
★ अजब तासीर थी इक रतजगे की।
ये नज़र थक के भी बोझिल नहीं थी।।
★ फ़क़त थी डूब जाने की तमन्ना।
हमें भी ख़्वाहिशे-साहिल नहीं थी।।
★ न जाने किसलिए नादिम है कब से।
मेरी हसरत की तू क़ातिल नहीं थी।।
★ जो बातिल थी कभी हक़ बन न पाई।
जो हक़ है वो कभी बातिल नहीं थी।।
★ हमें भी सर-फ़रोशी सूझती है।
अकेली हसरते-बिस्मिल नहीं थी।।