■ खोज-बीन / तंत्र-जगत (परत दर परत एक खुलासा)
■ सारा खेल “कर्ण-पिशाचिनी” का
★ चमत्कार या पाखण्ड नहीं
★ एक प्राचीन साधना है यह
★ जो बताती है कान में राज़
【प्रणय प्रभात】
किसी इंसान की पहचान सहित उसके मन मे छिपे सवाल को जान लेना कोई चमत्कार नहीं। उसकी पहचान और समस्या को बिना सुने समझना और पहले से लिख कर बताना पाखंड भी नहीं। फिर चाहे वो इंसान ख़ुद सामने आ कर खड़ा हो या उसे संकेत दे कर भीड़ के बीच से बुलाया जाए। यह सारा खेल दरअसल एक सिद्धि का है, जो अल्प-साधना से हासिल हो जाती है। यह और बात है कि आदिकाल से प्रचलित अन्यान्य सिद्धियों की तरह इसके भी अपने जोखिम हैं। जिनके बारे में तंत्र लोक साधक को पहले से आगाह कराता आया है।
हीलिंग, फीलिंग, टेलीपैथी आदि को मानने वाला विज्ञान माने या न माने विज्ञान जाने, मगर सच वही है जो सदियों से लोगों को लुभाता और चौंकाता आ रहा है। इसी सच का एक पक्ष आज रहस्य के कुहांसे को बेधने के लिए आपके सामने रख रहा हूँ। जिसके सारे प्रमाण लिखित रूप में आज भी उपलब्ध हैं। आज आप जान सकते हैं उस सिद्धि के बारे में, जिसका खेल इन दिनों देश-दुनिया में खलबली मचाए हुए है। जुटाई गई जानकारियों को आप तक पहुंचाने का उद्देश्य न अंधश्रद्धा के प्रति प्रेरित करना है, न ऐसे मार्गों का प्रचार-प्रसार। मंशा केवल आपके दिमाग़ में उमड़ रहे उस कौतुहल को शांत करने है, जो मौजूदा दौर की देन है।
खोज-बीन के बाद पता चला है कि किसी के सवाल को पहले से पर्चे पर लिखना एक सिद्धि से संभव है। जिसे तंत्र-जगत में “कर्ण-पिशाचिनी” के नाम से जाना जाता है। इस सिद्धि को पाने वाले के कान में परालौकिक शक्ति सामने वाले के सारे भेद क्षण भर में बता देती है। तंत्र विद्या के जानकारों का दावा है कि यह सिद्धि सब कुछ जानने से लेकर वशीकरण और मारण तक की शक्ति साधक को देती है। जिसके बदले में उसे सिद्धि की शर्तों का ईमानदारी से पालन करना होता है। इन शर्तों की उपेक्षा जानलेवा होती है।
तंत्र-शास्त्र के अनुसार “कर्ण-पिशाचिनी” जैसी अमोघ शक्ति मात्र 3 से 12 दिन की अवधि में हासिल हो जाती है। जिसके दो अलग-अलग मार्ग और माध्यम हैं। पहला मार्ग एक्सप्रेस-वे की तरह तेज़ मगर आशंकाओं से भरपूर है। जिसे “तामसिक साधना” की संज्ञा दी गई है। मात्र 3 दिन में सिद्धि देने वाली इस साधना का माध्यम “अघोर पंथ” से प्रेरित है। जिसमें साधक को स्वमूत्र-पान और मल-भक्षण तक करते हुए मंत्र का जाप करना होता है।
जानकारों के दावों को सच मानें तो महज 3 दिन में “कर्ण पिशाचिनी” सिद्ध हो जाती है। उपलब्ध तथ्य बताते हैं कि इस सिद्धि के साथ बिना वस्त्र प्रत्यक्ष प्रकट होने वाली पिशाचिनी को उसकी चाह के अनुसार संतुष्ट करना साधक की बाध्यता होती है। उसे ता-उम्र अविवाहित रहना पड़ता है, क्योंकि उसके साथ सिद्धि ही पत्नी की तरह रहती है। जो असंतुष्ट व रूष्ट होने की स्थिति में साधक के प्राण लेते देर नहीं लगाती। जानकार इस साधना को किसी सक्षम तांत्रिक के निर्देशन में या अपने जोखिम करने की सलाह अग्रिम चेतावनी के साथ देते हैं।
दूसरा मार्ग राजसी कहलाता है, जो धर्म-विज्ञान पर आधारित है। इसमें सिद्धि अधिकतम 12 दिनों में प्राप्त हो जाती है। जिसके मंत्र और जप-विधान लिखित रूप में उपलब्ध हैं। सिद्धि की शर्त और पाबंदियां इस मार्ग में भी प्रभावी होती हैं। जो पहले मार्ग जितनी घोर न होने के बाद भी उल्लंघन की दशा में घातक सिद्ध होती हैं। दावा किया जाता है कि इस सिद्धि को अर्जित करने वाले साधक को सामने आने वाले से जुड़ी हर तरह की जानकारी अपने कानों में स्पष्ट सुनाई देने लगती है। जिसे तमाम लोग बड़बोलेपन के कारण “वाई-फाई” या “ब्ल्यू-टूथ” जैसे नाम देने से नहीं चूकते। कथित चमत्कार से चमत्कृत लाखों लोग इसे ईश्वरीय कृपा मानते हैं। वहीं विरोधी इसे पाखंड और अंधविश्वास बता कर अपनी भड़ास निकालते हैं। संख्या उन लोगों की भी कम नहीं है जो आंखों देखे सच और स्पष्ट आभास के बाद भी विज्ञान की भाषा बोल कर अपनी झूठी विद्वता का थोथा प्रदर्शन करते हैं। इनमें बड़ी तादाद उन लोगों की होती है जो सामने वाले की बढ़ती हुई प्रसिद्धि को पचा पाने में अक्षम होते हैं और विष-वमन का कोई मौक़ा नहीं छोड़ते। जबकि उन्हें एक धर्माचार्य या मठाधीश के रूप में इस तरह की साधनाओं, क्रियाओं व शक्तियों की सैद्धांतिक जानकारी होनी ही चाहिए। जानकारी होते हुए भी एक सच को झुठलाने के पीछे कोई और मंशा हो तो उसे वही जानें।
जहां तक समस्या व सवाल को जानने के बाद समाधान या आशीर्वाद का सवाल है, वो एक अलग पहलू है। जिसका वास्ता तंत्र-मंत्र से न होकर धर्म और श्रद्धा से है। आशीर्वाद का सुफल सम्बद्ध स्थल और ईष्ट की अपनी क्षमता व कृपा पर निर्भर है। जिसके पीछे जातक की अपनी आस्था का विशेष महत्व है। इस बात को तो खुद विज्ञान भी नहीं नकार सकता। जो जानता है कि किसी रोग से लड़ने और जीतने में दवा और चिकित्सक से बड़ी भूमिका रोगी के उन पर बिश्वास और निजी जीवट की होती है। इसी के बलबूते कुछ लोग गभीर बीमारी के बावजूद मामूली उपचार से चंगे हो जाते हैं। जबकि अधिकांश लोग साधारण रोग से उच्च-स्तरीय इलाज के बाद भी सालों-साल जूझते रहते हैं। जिसे विज्ञान भी मनोविज्ञान के रूप में मान्यता देता है। दवा के साथ दुआ की महत्ता का खंडन चिकित्सा विज्ञान ने भी शायद ही कभी किया हो।
तो यह थी आज की एक ख़ास खोज-बीन, जो इन दिनों जारी एक बवाल और उससे जुड़े सवाल का जवाब समझी जा सकती है। अनुरोध इस तरह की साधना या सिद्धि को दूर से प्रणाम करने का भी है, क्योंकि जीवन अनमोल है। मनुष्य के रूप में यश, प्रतिष्ठा व सफलता पाने के सहज मार्ग और भी हैं तंत्र-मंत्र के सिवाय। जहां तक तंत्र-मंत्र की दुनिया और परालौकिक शक्तियों सहित क्रियाओं का सवाल है। उन्हें लेकर धर्मो के बीच कोई मतभेद नहीं है। जिसकी मिसाल सभी मुख्य धर्म-मज़हबों के वो प्रमुख लोग हैं, जो इस तरह की क्रियाएं झरते हैं। फिर चाहे वो तांत्रिक हों, मौलवी और जानतेर हों या फ़ादर और पादरी। अब मर्ज़ी उन पर भरोसा करने वाले लोगों की, कि उन्हें किस हद तक मानें। उन्हें न किसी तर्कशास्त्री के मशवरे की ज़रूरत है, किसी स्वयम्भू वैज्ञानिक के प्रमाणपत्र की। किसी को न किसी की निजी आस्था पर सवाल उठाने का अधिकार है, न मान्यता से खिलवाड़ का हक़। यह बातसबको याद रखनी चाहिए। बशर्ते उनकी सोच व नीयत में फ़साद और विवाद न हो।
【संपादक】
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