■ ख़ान हुए रसखान
#शख़्सियत
■ एक और रसखान
(कल के उस्ताद अजमेरी ख़ान साहब अब भगवान श्री कृष्ण को समर्पित)
【प्रणय प्रभात】
अच्छी संगत व सद्प्रेरणा किसी के भी जीवन को बदल सकती है। बशर्ते समय-सुयोग स्थापित हो और व्यक्ति इस सुअवसर को तुरंत लपक ले। इसके बाद स्वतः सिद्ध हो जाता है कि सुसंगति की सार्थकता क्या है। कहा भी गया है कि-
“कदली, सीप, भुजंग मुख, स्वाति एक गुण तीन।
जैसी संगति बैठिए, तैसो ही फल दीन।।”
कहा यह भी गया है कि-
“एक घड़ी, आधी घड़ी, आधी सो पुनि आध।
तुलसी संगत साधु की हरे कोटि अपराध।।”
लेकिन इसके लिए भी एक सुयोग बनना आवश्यक है। जो ईश्वर की कृपा के बिना संभव नहीं। स्वयं तुलसीदास जी ने स्पष्ट किया है कि-
“बिनु सत्संग विवेक न होही।
राम कृपा बिनु सुलभ न सोही।।”
स्पष्ट है कि बिगड़ने का योग समय बनाता है और सुधरने का ईश्वर। वो भी उसे, जिस पर उसे कृपा करनी हो। इस सच के प्रमाण देवभूमि भारत में पग-पग पर बिखरे हुए हैं। जिनमे से एक आपके लिए प्रस्तुत करने का माध्यम प्रभु ने मुझ अधम को बनाया है। आज एक माध्यम के रूप में आपका परिचय कराता हूँ एक व्यक्तित्व से, जो प्रभु-कृपा से न केवल भव्य बल्कि दिव्य भी बन गया।
तस्वीर में मेरे साथ दिखाई दे रहे हैं अपनी मचलती हुई उंगलियों से तबले के साथ-साथ असंख्य दिलों पर लयबद्ध थाप देने वाले संगीत जगत के सुप्रसिद्ध तबला वादक उस्ताद अजमेरी खान। जिन्हें स्थानीय महाराष्ट्र समाज के श्री गणेशोत्सव में बचपन से तमाम बार अलसुबह तक सामने बैठ कर सुना। ख़ान साहब मूलतः हमारे ही संभाग (चंबल) के अंतर्गत तहसील मुख्यालय जौरा (ज़िला-मुरैना) के निवासी हैं। जिनके क़द्रदानों और दीवानों की तादाद अच्छी-ख़ासी रही है।
नामचीन गायक, वादक कलाकारों के साथ संगत व जुगलबंदी करने और अपनी कला का परचम लहराने वाले उस्ताद अजमेरी ख़ान अब पूरी तरह वृंदावन के वासी बन चुके हैं। वे अपनी कला के साथ योगेश्वर भगवान श्री कृष्ण के प्रति समर्पित हो चुके हैं। एक अरसे तक अजमेरी उस्ताद के नाम से मशहूर ख़ान साहब ने अब अपना नाम “रसखान” कर श्रीधाम को अपना ठिकाना बना लिया है। कुछ बरस पहले की इस बड़ी तब्दीली के बाद उस्ताद का स्वभाव ही नहीं समूचा व्यक्तित्व बदल गया है। खान-पान, परिधान में इतना बदलाव कि नौ साल पहले उन्हें मेरे जैसे प्रशंसक भी देर तक नहीं पहचान सके। शानदार अंगवस्त्र के साथ धोती-कुर्ते में सजे ख़ान साहब के सिर पर संत-महंत जैसी सुंदर केशराशि, उन्नत ललाट पर दिव्यता बिखेरता तिलक और निखरा हुआ रंग-रूप सभी को चकित कर देने वाला था।
अनौपचारिक बातचीत के दौरान पता चला कि बरसों तक एक मादक “व्यसन” के बलबूते रात भर कमाल का वादन करने वाले उस्ताद प्रभु प्रेरणा से “व्यसन-मुक्त” होने के बाद ही इस नई आभा तक पहुंचे हैं। यह सुसंगति व ईश्वरीय अनुकम्पा का एक अद्भुत प्रमाण है। प्रेरणा है उन असंख्य लोगों (ख़ास कर युवाओं व किशोरों) के लिए, जो किसी भी व्यसन के जाल को स्थायी व ख़ुद को उसकी क़ैद में विवश मानते हैं। लीजिए प्रेरणा और कीजिए अभिनंदन साहित्य के बाद कला के क्षेत्र से निकले दूसरे “रसखान” का। सादर वंदन श्री रस”ख़ान” जी। आप शतायु हों और प्रेरणा का केंद्र बने रहें।
कामना यह भी है कि ईश्वर की यह कृपा असंख्य पथभ्रमितों और व्यसनियों पर भी हो। जो सन्मार्ग पर चलने के साथ अन्य भटके हुओं का भी मार्ग प्रशस्त कर सकें।
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#पुनश्च:
(आलेख 9 वर्ष पूर्व की आत्मीय भेंट वार्ता पर आधारित है)