■ काव्यात्मक व्यंग्य / एक था शेर…..!!
■ काव्यात्मक व्यंग्य
■ एक था शेर…..!!
【 प्रणय प्रभात
“एक शेर था,
बड़ा ज़िद्दी, क्रोधी और अकडेल था!
किसी से सीधे मुंह बात करना,
उसकी शान के खिलाफ़ था!
मा-बाप डरते थे,
खुशामद करते थे,
मोहल्ला थर्राता था, हर कोई घबराता था!
साक्षात यमराज था, स्वभाव लाइलाज था!
अब शेर शांत है,
अकड़ छू-मन्तर हो चुकी है!
गुस्सा भूल चुका है,
चुप रहना क़बूल चुका है!
कुछ साल हुए,,,,,
हालात से निबाह कर चुका है….
पता चला है कि बेचारा विवाह कर चुका है।।”