मूँछ पर दोहे (मूँछ-मुच्छड़ पुराण दोहावली )
1 *मेरे दिल की जुबां, मेरी कलम से*
सबका अपना दाना - पानी.....!!
एक उम्र तक तो हो जानी चाहिए थी नौकरी,
नहीं रखा अंदर कुछ भी दबा सा छुपा सा
परिसर खेल का हो या दिल का,
घृणा प्रेम की अनुपस्थिति है बस जागरूकता के साथ रूपांतरण करना
रावण न जला हां ज्ञान जला।
*जीवन सिखाता है लेकिन चुनौतियां पहले*
Chalo phirse ek koshish karen
మగువ ఓ మగువా నీకు లేదా ఓ చేరువ..
डॉ गुंडाल विजय कुमार 'विजय'
प्यार करता हूं और निभाना चाहता हूं
तड़के जब आँखें खुलीं, उपजा एक विचार।
*आज बड़े अरसे बाद खुद से मुलाकात हुई हैं ।
*जानो आँखों से जरा ,किसका मुखड़ा कौन (कुंडलिया)*
#विश्व_वृद्धजन_दिवस_पर_आदरांजलि
एक कलाकार/ साहित्यकार को ,