■ कटाक्ष / प्रत्यक्ष नहीं परोक्ष
■ कर्म बना देते हैं प्रतीक…
【प्रणय प्रभात】
जहां तक मेरी जानकारी है, बाल-कांड की ताड़का से ले कर सुंदर-कांड की लंकिनी तक एक भी ऐसी राक्षसी का उल्लेख नहीं है, जो राम जी के नाम से भड़की हो।
बाक़ी आप समझ ही गए होंगे कि मैं कहना क्या चाहता हूँ। कहने का मतलब बस इतना सा है कि किसी को गलियाने के लिए उसका नाम लेना अनिवार्य नहीं। अगले के अपने कर्म ही उसे किसी प्रवृत्ति का जीवंत प्रतीक बना देते हैं।।