Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
28 Apr 2023 · 1 min read

■ उनके लिए…

■ उनके लिए…
जिन्हें थोड़ा-बहुत सरोकार है दीन-दुनिया के रिश्ते-नातों से। बाक़ी के लिए इन लफ़्ज़ों के शायद कोई मानी नहीं।।
【प्रणय प्रभात】

1 Like · 537 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
You may also like:
हौसला न हर हिम्मत से काम ले
हौसला न हर हिम्मत से काम ले
Dr. Shakreen Sageer
तुम अगर स्वच्छ रह जाओ...
तुम अगर स्वच्छ रह जाओ...
Ajit Kumar "Karn"
उनसे नज़रें मिलीं दिल मचलने लगा
उनसे नज़रें मिलीं दिल मचलने लगा
अर्चना मुकेश मेहता
एक दिया बहुत है जलने के लिए
एक दिया बहुत है जलने के लिए
Sonam Puneet Dubey
3875.💐 *पूर्णिका* 💐
3875.💐 *पूर्णिका* 💐
Dr.Khedu Bharti
वो जो बातें अधूरी सुनाई देती हैं,
वो जो बातें अधूरी सुनाई देती हैं,
पूर्वार्थ
जय हो जय हो महादेव
जय हो जय हो महादेव
Arghyadeep Chakraborty
पर्यावरण संरक्षण*
पर्यावरण संरक्षण*
Madhu Shah
Acrostic Poem- Human Values
Acrostic Poem- Human Values
jayanth kaweeshwar
प्रीत को अनचुभन रीत हो,
प्रीत को अनचुभन रीत हो,
पं अंजू पांडेय अश्रु
*हुस्न से विदाई*
*हुस्न से विदाई*
Dushyant Kumar
ईश्वर
ईश्वर
Shyam Sundar Subramanian
माँ
माँ
Raju Gajbhiye
"सदियों का सन्ताप"
Dr. Kishan tandon kranti
लेती है मेरा इम्तिहान ,कैसे देखिए
लेती है मेरा इम्तिहान ,कैसे देखिए
Shweta Soni
आत्मावलोकन
आत्मावलोकन
*प्रणय*
मानवता का मुखड़ा
मानवता का मुखड़ा
Seema Garg
इत्तिफ़ाक़न मिला नहीं होता।
इत्तिफ़ाक़न मिला नहीं होता।
सत्य कुमार प्रेमी
" तेरा एहसान "
Dr Meenu Poonia
तेरे पास आए माँ तेरे पास आए
तेरे पास आए माँ तेरे पास आए
Basant Bhagawan Roy
*कविवर श्री राम किशोर वर्मा (कुंडलिया)*
*कविवर श्री राम किशोर वर्मा (कुंडलिया)*
Ravi Prakash
प्रकृति की गोद खेल रहे हैं प्राणी
प्रकृति की गोद खेल रहे हैं प्राणी
तारकेश्‍वर प्रसाद तरुण
दो जून की रोटी
दो जून की रोटी
Dr. Ramesh Kumar Nirmesh
वह भी चाहता है कि
वह भी चाहता है कि
gurudeenverma198
ज़िन्दगी
ज़िन्दगी
Santosh Shrivastava
खिड़की के बाहर दिखती पहाड़ी
खिड़की के बाहर दिखती पहाड़ी
Awadhesh Singh
आब-ओ-हवा
आब-ओ-हवा
विनोद वर्मा ‘दुर्गेश’
*मनः संवाद----*
*मनः संवाद----*
रामनाथ साहू 'ननकी' (छ.ग.)
उल्लू नहीं है पब्लिक जो तुम उल्लू बनाते हो, बोल-बोल कर अपना खिल्ली उड़ाते हो।
उल्लू नहीं है पब्लिक जो तुम उल्लू बनाते हो, बोल-बोल कर अपना खिल्ली उड़ाते हो।
Anand Kumar
आसान नहीं होता घर से होस्टल जाना
आसान नहीं होता घर से होस्टल जाना
Sandhya Chaturvedi(काव्यसंध्या)
Loading...