■ आह्वान करें…
#कविता:–
■ शिव समाधिस्थ आह्वान करें…!!
【प्रणय प्रभात】
था हर्ष कभी अब महा-शोक।
चंदन-वन है अब नाग-लोक।
जितनी शाखें उतने भुजंग।
सब दम साधे सब आज दंग।
विष-दंतों के तीखे प्रहार।
अब इत्र नहीं बस गरल धार।
मिल कर सब स्तुति गान करें।
शिव समाधिस्थ आह्वान करें।।
★ ना रहे विषधरों का डेरा।
हो नष्ट-भ्रष्ट तम का घेरा।
साझा प्रयत्न हो सके काश।
चिंता, भय, भ्रम का सर्वनाश।
करिए प्रयास कुछ युक्ति मिले।
हर आशंका से मुक्ति मिले।
जीवन पथ फिर आसान करें।
शिव समाधिस्थ आह्वान करें।।
★ अब स्वप्नों का आँचल छूटे।
अनिवार्य हुआ तंद्रा टूटे।
आंखें देखें जो है यथार्थ।
मन अविचल हो बन सके पार्थ।
निर्णय ले हो कर निर्विकार।
कर सके अभय हो शर-प्रहार।
बस लक्ष्यों का संधान करें।
शिव समाधिस्थ आह्वान करें।।
★ रह कर ना मूक विषाद करें।
हैं शब्द ब्रह्म बस नाद करें।
संभव हम सब की सुनें टेव।
चैतन्य हो उठें महादेव।
हो रुद्र जागरण नर्तन हो।
फिर से युग का परिवर्तन हो।
समवेत रहें सब ध्यान करें।
शिव समाधिस्थ आह्वान करें।।