■ आज की सीख…
#आज_की_सौगात
■ सियासत_का_सबक़…
【प्रणय प्रभात】
सियासी लोग शर्मदार हों या बेशर्म। अक़्लमंद हों या फिर अक़्ल”बंद।” देश की जनता को अपने बोल-वचन और कर्मों से कोई न कोई सबक़ आए दिन देते रहते हैं। यह और बात है कि जनता ले या न ले।
इसी क्रम में आज की ताज़ा सीख भद्रजनों की अभद्रता से गूंजती करोड़ों के खर्चे वाली महफ़िल से उपजी है। कुछ इस अंदाज़ में-
“कान में रूई ठूंसो।
जितना चाहो भूंसो।।”
मतलब, नक्कारखाने में तूती की आवाज़ को भारी साबित करने की पराक्रम से भरी कोशिश। जय हो खानापूर्ति। जय हो महान मूर्ति।।