जख्मो से भी हमारा रिश्ता इस तरह पुराना था
घर को छोड़कर जब परिंदे उड़ जाते हैं,
सागर तो बस प्यास में, पी गया सब तूफान।
इंसान का मौलिक अधिकार ही उसके स्वतंत्रता का परिचय है।
ढूंढ रहा हूं घट घट उसको
अटल मुरादाबादी(ओज व व्यंग्य )
दलितों, वंचितों की मुक्ति का आह्वान करती हैं अजय यतीश की कविताएँ/ आनंद प्रवीण
जलाओ प्यार के दीपक खिलाओ फूल चाहत के
मौन मुहब्बत में रही,आंखों में थी आश।
सच जानते हैं फिर भी अनजान बनते हैं
सुंदरता हर चीज में होती है बस देखने वाले की नजर अच्छी होनी च