■ आज की बात
■ शमन के लिए ज़रूरी वमन
【प्रणय प्रभात】
पढ़ाई से अक़्ल का, होशियारी से शक़्ल का। समृद्धि से समझ का,
हमेशा वास्ता हो, यह ज़रूरी नहीं है।
हमारे इंसानी समाज में तमाम लोग हैं, जो ना तो सामुदायिकता के मायने जानते हैं, न संगठन के तक़ाज़े।
बेशक़ उनका ताल्लुक़ अभिजात्य और सुशिक्षित समाज, समुदाय या परिवार से हो।
मुझे लगता है कि बड़ी और भव्य पृष्ठभूमि के पीछे भी क्षुद्र सोच के कीड़े उपज और पनप सकते हैं।
याद रखिए, हम जिसे हज़म नहीं कर पाते, उसका वमन कर देते हैं। इसी तरह बुरे विचारों के शमन का भी दूसरा उपाय नहीं। शायद यही वजह है कि लोगों को बुरे विचारों का वमन करना पड़ता है।
अब सोच और विचार में सड़न होगी तो दुर्गंध आएगी ही। वमन से भी आती है। जो यह बताती है कि बंदे ने ठूंस क्या रखा था आख़िर।
इसलिए, कोई ज़हर उगले तो ताज्जुब मत कीजिएगा। उसे उगल लेने दीजिएगा। ताकि उसके संग्रहण व भंडारण में थोड़ी-बहुत कमी आए।
बस, आप इसके संक्रमण से दूर रहिए। ठीक वैसे ही, जैसे किसी के वमन के दौरान गंदे छींटों से बचने के लिए दूर हटते हैं। मतलब वही कि आंख, नाक और मुंह बंद रखें। कुछ क्षणों के लिए। ताकि आप संक्रमित होने से बचे रहें।
मत भूलिएगा कि मनचाहा ठूंस कर अजीर्ण का शिकार होना किसी का अपना अधिकार है। इसके बाद उसे अपाच्य को उगलने का भी विशेषाधिकार है। रोकना-टोकना क्यों…?
आपका अधिकार अपने आप को संक्रमण और दुर्गंध से दूर और सुरक्षित रखना है। कृपया अपने इस अधिकार का उपयोग अवश्य करें। जो आपकी अपनी सेहत के लिए बेहतर होगा।।
■प्रणय प्रभात■
श्योपुर (मध्यप्रदेश)