*सच्चे गोंड और शुभचिंतक लोग...*
आज हम जा रहे थे, और वह आ रही थी।
ज्ञान से शिक्षित, व्यवहार से अनपढ़
सजी सारी अवध नगरी , सभी के मन लुभाए हैं
जिस्म का खून करे जो उस को तो क़ातिल कहते है
*जब से मुकदमे में फॅंसा, कचहरी आने लगा (हिंदी गजल)*
"हमारे दर्द का मरहम अगर बनकर खड़ा होगा
बिन परखे जो बेटे को हीरा कह देती है
कौन कहता ये यहां नहीं है ?🙏
जो भी आ जाएंगे निशाने में।
मै पैसा हूं मेरे रूप है अनेक
'सफलता' वह मुकाम है, जहाँ अपने गुनाहगारों को भी गले लगाने से
तेवरी में रागात्मक विस्तार +रमेशराज
सदा प्रसन्न रहें जीवन में, ईश्वर का हो साथ।
ईश्वर से साक्षात्कार कराता है संगीत
अनिल कुमार गुप्ता 'अंजुम'