पुस्तक समीक्षा- धूप के कतरे (ग़ज़ल संग्रह डॉ घनश्याम परिश्रमी नेपाल)
नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर
जब तक हम जीवित रहते हैं तो हम सबसे डरते हैं
इश्क़ लिखने पढ़ने में उलझ गया,
सुबह देखता हूं शाम देखता हूं
When you learn to view life
जीवन एक सुंदर सच्चाई है और
तू फितरत ए शैतां से कुछ जुदा तो नहीं है
जिंदगी! क्या कहूँ तुझे
जितेन्द्र गहलोत धुम्बड़िया
विचार
अनिल कुमार गुप्ता 'अंजुम'
दोहे बिषय-सनातन/सनातनी
राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'
*भॅंवर के बीच में भी हम, प्रबल आशा सॅंजोए हैं (हिंदी गजल)*
हाथ माखन होठ बंशी से सजाया आपने।
आओ सर्दी की बाहों में खो जाएं
वो हक़ीक़त पसंद होती है ।
अगर "स्टैच्यू" कह के रोक लेते समय को ........