■ आज का दोहा…
■ मन्तव्य
अब बारह महीने गूंजने वाला राग बन चुका है राग-दरबारी। जो चुनावी काल मे और उबाल पर आ जाता है। वैसे भी वैशाख का महीना पास है। ऐसे में वैशाख-नंदनो के सुर न सुनाई दें तो काहे का बैशाख। अब तक आप सुन रहे हैं “मैं-तू, मैं-तू।” अब सुनिएगा “ढेंचू-ढेंचू।” वो भी दिन-रात।।
■प्रणय प्रभात■