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20 May 2024 · 1 min read

■ आज का चिंतन…

■ आज का चिंतन…
मैं उन लोगों से कतई इत्तिफ़ाक़ नहीं रखता, जो मौजूदा दौर को सब कुछ देने वाला मानते हैं। मुझे लगता है कि कथित विकासशीलता के इस दौर ने हमें जो दिया है, उससे कई गुना अधिक छीना है। ख़ास कर हमारा वो सुक़ून, जिसका सरोकार हमारी रूह से था। आज की थोथी चमक के पीछे की वीरानी को महसूस कर के सोचिएगा। शायद समझ आए। कहना नई नस्ल से नहीं समकालीनों और पूर्ववर्तियों से है बस।।
★प्रणय प्रभात★

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