■ आज का चिंतन…
■ निरर्थक प्रयास व्यर्थ…
【प्रणय प्रभात】
चक्षुहीन को दर्पण, बधिर को ज्ञान, मूक को पकवान और मूढ़ को रत्न देना मूर्खता है। इसी प्रकार प्रतिक्रिया-शून्य व संवेदनाहीनों के समक्ष क्रिया का कोई अर्थ नहीं। श्रम, पूंजी व समय की तरह शब्द और भाव भी अपात्रों को देना व्यर्थ है।