करतीं पूजा नारियाँ, पावन छठ त्योहार
"अहम्" से ऊँचा कोई "आसमान" नहीं, किसी की "बुराई" करने जैसा "
होता है तेरी सोच का चेहरा भी आईना
कभी कहा न किसी से तिरे फ़साने को
ये कैसे होगा कि तोहमत लगाओगे तुम और..
महबूब से कहीं ज़्यादा शराब ने साथ दिया,
"आओ हम सब मिल कर गाएँ भारत माँ के गान"
किसी पत्थर की मूरत से आप प्यार करें, यह वाजिब है, मगर, किसी
यह जो कानो में खिचड़ी पकाते हो,
ग़ज़ल _ मुहब्बत में बहके , क़दम उठते उठते ,