छिपी हो जिसमें सजग संवेदना।
Pt. Brajesh Kumar Nayak / पं बृजेश कुमार नायक
ख़्यालों में सताना तेरा मुझ को अच्छा न लगा
"इस जीवन-रूपी चंदन पर, कितने विषधर लिपट गए।
दुनिया देखी रिश्ते देखे, सब हैं मृगतृष्णा जैसे।
बुढ़ापा
Shyamsingh Lodhi Rajput "Tejpuriya"
शीर्षक "सद्भाव " (विस्तृत-आलेख)
कैसी दुनिया है की जी भी रहे है और जीने के लिए मर भी रहे है । क्या अजब लीला है तेरी की जो खो रहे ह, आखिर वही पा रहे
सहकारी युग का 13 वां वर्ष (1971- 72 )
ढूंढ रहा हूं घट घट उसको
अटल मुरादाबादी(ओज व व्यंग्य )
बिन बोले सब कुछ बोलती हैं आँखें,