■ अप्रैल फ़ूल
#लघु_व्यंग्य / #अप्रैल_फुल
■ जी हाँ! मैं मूर्ख हूँ…!!
【प्रणय प्रभात】
“जी हाँ!
आज मेरा दिन है।
क्योंकि,,,,मैं मूर्ख हूँ।
मूर्ख हूँ तभी तो,
कड़वी हक़ीक़तों को
सपना समझता हूँ,
जिन्हें कोई लगाव नहीं,
उन्हें भी अपना समझता हूँ।
मूर्ख हूँ शायद, इसीलिए,
मरुभूमि में नीर ढूँढता हूँ,
औरों की खुशी में खुशी,
पीर में पीर ढूँढता हूँ।
हर नाता दिमाग़ नहीं,
केवल दिल से निभाता हूँ।
ज़रा सी खुशी मिले तो,
मस्ती में झूम जाता हूँ।
यक़ीनन,,,निस्संदेह,,,,
में मूर्ख ही हूँ जो,
माथे का चंदन बनने की चाह में
कइयों के रास्ते की धूल हूँ,
जिन्हें गुलाब मानता रहा,
बस उन्हीं के लिए बबूल हूँ।
फिर भी ये चाहत है कि
आप हँसो-मुस्कुराओ,
रोज़ औरों के साथ मनाते हो,
आज का दिन मेरे साथ मनाओ।
क्योंकि, मैं मूर्ख हूँ,
मेरा सच मुझे क़ुबूल है।
वैसे भी आज अप्रैल फ़ूल है।।
★प्रणय प्रभात★
श्योपुर (मध्यप्रदेश)
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