■ अन्वेषण_विश्लेषण
■ बात में कुछ बात होना चाहिए…!
★ वाकचातुर्य बनाम वाचालता
★ प्रसंग में केबीसी के दो एपीसोड
【प्रणय प्रभात】
“बातन हाथी पाहिये, बातन हाथी पाय” एक पुरानी कहावत है। जो हर पीढी के लिए एक सीख है। कहावत की पृष्ठभूमि में भले ही राजशाही वाली व्यवस्था झलकती हो, मगर इसका अभिप्राय आज की दशा में भी उतना ही प्रासंगिक है। इसी के दो प्रमाण बीते एक ही सप्ताह में दो बार मिले। जिनके प्रभाव परस्पर विपरीत दिखाई दिए। प्रसंग में है बहुचर्चित टीव्ही शो “कौन बनेगा करोड़पति।” इस लोकप्रिय गेंम शो में दो प्रतिभागियों ने अपनी बातों से जनमानस पर छाप छोड़ी। यह अलग बात है कि जनभावनाएँ एक के अनुकूल रहीं तो दूसरे के प्रतिकूल। सागर ज़िले के खुरई कस्बे से सम्बंधित प्रतिभागी की वाकपटुता जहां रोचक व प्रशंसनीय रही। वहीं संस्कारधानी जबलपुर के एक प्रतिभागी की वाचालता पकाऊ और निंदनीय सिद्ध हुआ। आगे का सच एंकर अमिताभ बच्चन के रुख ने स्पष्ट कर दिया। बीते सप्ताह के प्रतिभागी 50 लाख रुपए जीतने में सफल हुए। जबकि बीते दिवस के प्रतिभागी महज 10 हज़ार रुपए पाकर बाहर हो गए। पहले प्रतिभागी के करोड़पति न बन पाने का दर्शकों तक मे मलाल रहा। वहीं दूसरे प्रतिभागी के बाहर होने के बाद दर्शक राहत की सांस लेते नज़र आए। वजह बना उनका बड़बोलापन, जिसमे कुंठा, कुतर्क और आत्मप्रवंचना जैसे भावों की भरमार थी। ऐगा लगा मानो बच्चन साहब भी महाशय से पक चुके थे। शायद तभी उन्होंने तीनो लाइफ़-लाइन होते हुए भी ग़लत जवाब पर उन्हें उस तरीके से आगाह कराने में रुचि नहीं दिखाई, जैसी वे सामान्यतः दिखाते हैं। दोनों मामले हम सभी के लिए एक सबक़ जैसे हैं। लिखने का उद्देश्य न किसी एक की निंदा या प्रशंसा है। ना ही किसी को हतोत्साहित या प्रोत्साहित करने की मंशा। दोनों सज्जनों से वैयक्तिक अपरिचय के कारण आग्रह-पूर्वाग्रह का भी कोई प्रश्न नहीं। यह सब लिखने का प्रयोजन केवल एक संदेश देना भर है और वो इस एक पंक्ति में निहित है :-
“बात है तो बात में कुछ बात होंना चाहिए।” बस….! आशा है समझ गए होंगे आप भी?
【मालवा हेरॉल्ड में आज प्रकाशित】