"गानों में गालियों का प्रचलन है ll
ग़ज़ल _ मांगती इंसाफ़ जनता ।
हमें पदार्थ से ऊर्जा और ऊर्जा से शुद्ध चेतना तक का सफर करना
निगाहें मिलाके सितम ढाने वाले ।
मन के दीये जलाओ रे।
रामनाथ साहू 'ननकी' (छ.ग.)
सावन भादो
नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर
उस की आँखें ग़ज़ालों सी थीं - संदीप ठाकुर
औरते और शोहरते किसी के भी मन मस्तिष्क को लक्ष्य से भटका सकती
नारी : एक अतुल्य रचना....!
हारो बेशक कई बार,हार के आगे झुको नहीं।
लड़के रोते नही तो क्या उन को दर्द नही होता
Sandhya Chaturvedi(काव्यसंध्या)
बात जुबां से अब कौन निकाले
सर्दी और चाय का रिश्ता है पुराना,
हमने माना कि हालात ठीक नहीं हैं
चलो कहीं दूर जाएँ हम, यहाँ हमें जी नहीं लगता !
आजकल की पीढ़ी अकड़ को एटीट्यूड समझती है