■मेरी पारिवारिक यात्रा■
मेरी पारिवारिक यात्रा
बात एक दिन की जब सबने घर से बाहर घूमने जाने की योजना एक सप्ताह पहले ही बना ली थी।क्योंकि बच्चों की शीत कालीन छुट्टियां जो पड़ने वाली थी सबने सांची जाने की योजना पर हां भरी।सबने अपने अपने जरूरत के हिसाब से अपना अपना सामान पैक कर लिया। घर के सभी सदस्य घूमने पर जाने को तैयार हो गए। तभी मुझे अचानक घर मे बूढ़े सास- ससुर का ख्याल आया क्योंकि उनकी उम्र 70 के आसपास ही चल रही थी ससुर जी की तबियत आये दिन खराब रहती थी ।उन्हें संभालने वाला कोई भी न था।आस पड़ोस में भी सभी कामकाजी थे ।अपने काम मे व्यस्त होने के कारण मेने भी किसी से नही कहा कि एक दो दिन वो थोड़ा ख्याल रख ले।तभी मुझे मेरे माता पिता की याद आई और उनके बारे में सोच मेरा मन दया के सागर में डुब गया अगर मेरे माता पिता को ऐसे बीमारी की हालत में भैया- भाभी छोड़कर कहि बाहर ऐसे ही घूमने फिरने चले जायें तो उनका ख्याल कौन रखेगा,।ऐसा सोच मन मेरा पुरी तरह पसीज गया और मेने घूमने पर जाने के लिए मना कर दिया।बाकी सभी को मैने यात्रा पर जा रहे मेरे दो बेटे और बेटी मेरे देवर देवरानी उनकी दो बेटियां और मेरे पति उन सभी को शुभ यात्रा कह कर जैसे ही घर की दहलीज पर पांव रखा मेरे सास -ससुर के चेहरे पर खुशी की झलक देखते ही मेरा मन मयूर बन नाच उठा।मेने सही मायने में उस दिन सास -ससुर को अपने माता और पिता की जगह पाया था।बाहर तो कभी भी जा सकते
है,और जब सभी सदस्य वापिस आये तो वहां के खाने बैठने घूमने के चित्र दिखाए तो मुझे भी वही महसूस हुआ और तो यहां घर पर माता पिता की सेवा सबसे बढ़कर है ये मेने जाना था।
जो कि एक सुखद अनुभव और कार्य प्रतीत हुआ,,,,
गायत्री सोनू जैन मन्दसौर