शीर्षक - आप और हम जीवन के सच
*देती धक्के कचहरी, तारीखें हैं रोज (कुंडलिया*
इक उम्र जो मैंने बड़ी सादगी भरी गुजारी है,
जो बरसे न जमकर, वो सावन कैसा
प्यार को शब्दों में ऊबारकर
*जीवन को सुधारने के लिए भागवत पुराण में कहा गया है कि जीते ज
बावजूद टिमकती रोशनी, यूं ही नहीं अंधेरा करते हैं।
*मैंने देखा है * ( 18 of 25 )
श्राद्ध- पर्व पर सपने में आये बाबूजी।
रामनाथ साहू 'ननकी' (छ.ग.)
23/164.*छत्तीसगढ़ी पूर्णिका*
गजल
डॉ सगीर अहमद सिद्दीकी Dr SAGHEER AHMAD
यह कलियुग है यहां हम जो भी करते हैं
कभी धूप तो कभी बदली नज़र आयी,