सम्मान बचाने के लिए पैसा ख़र्च करना पड़ता है।
"तुम कौन थे , क्या थे, कौन हो और क्या हो ? इसके बारे में कोई
डॉ कुलदीपसिंह सिसोदिया कुंदन
मैं भी तुम्हारी परवाह, अब क्यों करुँ
कोई जब पथ भूल जाएं
नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर
अमावस्या में पता चलता है कि पूर्णिमा लोगो राह दिखाती है जबकि
हिन्दू मुस्लिम करता फिर रहा,अब तू क्यों गलियारे में।
सिपाही
डॉ राजेंद्र सिंह स्वच्छंद
तुझे बंदिशों में भी अपना राहगुज़र मान लिया,
नफ़रत
Sarla Sarla Singh "Snigdha "
गीत- छिपाता हूँ भुलाता हूँ...
पेड़ लगाओ एक - दो, उम्र हो रही साठ.
अगर तलाश करूं कोई मिल जायेगा,