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13 Nov 2017 · 1 min read

≈≈≈ जैहिंद के हाइकु ≈≈≈

जैहिंद के हाइकु
// दिनेश एल० “जैहिंद”

अब हाइकु
करता सम्मोहित
आते हैं स्वप्न !

लिखे हाइकु
कविगण काइकु
हैं आकर्षित !

देखा ना मैंने
कभी स्वप्न सार्थक
हैं निरर्थक !

शर्म गहना
सत्रहवाँ श्रृंगार
बढ़ाए मान ।

मिला शर्मीला
हुई जो मोहब्बत
खुश शर्मीली ।

है शर्मनाक
आतंकी गतिविधि
राष्ट्रविरोधी ।

किसान पस्त
हैं नर-नारी त्रस्त
क्यूँ शर्मसार ।

उतारो शर्म
हो जाओ मालेमाल
लो पुरस्कार ।

हुआ बेभाव
शर्म से कैसी शर्म
शर्म बेमोल ।

===============
दिनेश एल० “जैहिंद”
01. 07. 2017

Language: Hindi
335 Views
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