≈≈≈ जैहिंद के हाइकु ≈≈≈
जैहिंद के हाइकु
// दिनेश एल० “जैहिंद”
अब हाइकु
करता सम्मोहित
आते हैं स्वप्न !
लिखे हाइकु
कविगण काइकु
हैं आकर्षित !
देखा ना मैंने
कभी स्वप्न सार्थक
हैं निरर्थक !
शर्म गहना
सत्रहवाँ श्रृंगार
बढ़ाए मान ।
मिला शर्मीला
हुई जो मोहब्बत
खुश शर्मीली ।
है शर्मनाक
आतंकी गतिविधि
राष्ट्रविरोधी ।
किसान पस्त
हैं नर-नारी त्रस्त
क्यूँ शर्मसार ।
उतारो शर्म
हो जाओ मालेमाल
लो पुरस्कार ।
हुआ बेभाव
शर्म से कैसी शर्म
शर्म बेमोल ।
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दिनेश एल० “जैहिंद”
01. 07. 2017