√√ *जन्म मरण का फिर इस जग में फेरा 【भक्ति-गीत】*
जन्म मरण का फिर इस जग में फेरा 【भक्ति-गीत】
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नहीं चाहता जन्म-मरण का फिर इस जग में फेरा
(1)
इस धरती का क्या आकर्षण ,बीमारी हैं भारी
कदम-कदम पर मौत कर रही आने की तैयारी
कण-भर भी कुछ नहीं कहीं है जिसको कह दूँ मेरा
(2)
यह कैसे संबंध , सुखद लगते पर दुख ही देते
चार दिवस के संग मोड़-मुख परम मित्र भी लेते
चहल-पहल से मस्त दिखा शमशान हर जगह तेरा
(3)
कठपुतली की तरह बनाए तुमने जग में मेले
रचे भाग्य में खेल-खिलौने जैसे प्राणी खेले
सबको सीमित मिला कर्म करने को छोटा घेरा
(4)
बहुत हुआ अब मुझको अपने आश्रय में ले आओ
आवागमन-चक्र में प्रभु जी ! अब मत और थकाओ
कृपा करो हे नाथ ! मुझे दो उज्ज्वल नया सवेरा
नहीं चाहता जन्म मरण का फिर इस जग में फेरा
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रचयिता : रवि प्रकाश ,बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 99976 15451