√√बुरा न मानो होली है 【बाल कविता 】
बुरा न मानो होली है 【बाल कविता 】
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चला अकड़कर शेर , कहा मैं हूँ जंगल का राजा
जो डालेगा रंग ,बजा दुंगा मैं उसका बाजा
अकड़ सुनी तो सब बोले, अब रंग इसे
डालेंगे
सजा मिलेगी सोचा सबने, जो चाहे खा लेंगे
रंग सूंड से हाथी ने , भरकर फुहार दे मारी
रंग छोड़ती बंदर के हाथों में थी पिचकारी
हाथों में लेकर गुलाल हिरनी ने खूब लगाया
आग बबूला हुआ शेर ,चेहरा गुस्से में आया
बोला “कैसे नटखट यह तुम लोगों की टोली है”
सब चिल्लाए “शेरू दादा ! बुरा न मानो होली है”
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रचयिताः रवि प्रकाश, बाजार सर्राफा, रामपुर ,उत्तर प्रदेश,
मोबाइल 999761 5451