√√क्या मरना क्या जीना 【गीत 】
क्या मरना क्या जीना 【गीत 】
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क्या मरना-क्या जीना भैया ! दिन निकला फिर रात हुई
(1)
कभी हुए जाड़ों वाले दिन छोटे-छोटे होते
जल्दी-जल्दी दिन ढलता है चमक उजाले खोते
गर्मी के लंबे दिन होते ,लंबी दिनभर बात हुई
(2)
दिन के बाद रात है निश्चित फिर अगला दिन आता
दिन में सूरज और रात में चंदा जग महकाता
पता नहीं किसके हाथों क्यों जाने यह शुरुआत हुई
(3)
जीवन-चक्र पूर्ण हो जाता ,रहता कार्य अधूरा
महाकाल-विकराल मनुज को रह-रह करता घूरा
बिरले को वर मिला मुक्ति का ,मरण एक सौगात हुई
क्या मरना क्या जीना भैया ! दिन निकला फिर रात हुई
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रचयिता ःरवि प्रकाश, बाजार सर्राफा
रामपुर उत्तर प्रदेश
मोबाइल 999 7615451