••बस एक बार खुद से तू कर ले प्यार••
हौंसलों के पंख लिए उड़ने को बेकरार….. पंख हैं बिंधे हुये परिवार के प्यार की सुई है आर -पार…..
बढ़ना चाहती है.. मंजिल को पाने के लिए…
पैर रूढ़ीवादिता और परम्परायें हैं जकड़े हुये….
क्या करेगी? कैसे मुकम्मल जहां पायेगी?
बिन पाँव और पंखोंके चारदीवारी के पिंजरे में हो कैद उसकी ख़्वाहिश भी मर जायेगी….
ख़्वाहिशों का घोंटकर गला कैसे खुश रह पायेगी..
नारी के आत्मसम्मान को अब खुद नारी ही बचायेगी…..
पीठ पछताने से हांसिल कुछ नहीं होगा….
अपना वजूद खुद तुझको ही ढूँढना होगा…
खुद पर कर यकींन तू …तुझे जहाँ मिलेगा….
मुकम्मल जमीं है तेरी ..चाहे तो आसमान भी मिलेगा………….
क्यों वजूद भूल कर अपना… तू खुद को मिटाती है?……….क्यों तू भी नहीं जहाँ में किस्मत आजमाती है?…..
नहीं है तू किसी से कम.. यह समझना तुझ को ही होगा…. लुटाकर खुशियाँ अपनी हाँसिल कुछ नहीं होगा…
जीने का हक तुझको भी है…
तू जी ले ज़िन्दगी अपनी ..
खुद को भुलाकर….
तू कर रही है बन्दगी किसकी? ….
हक पाने का.. हक तुझको भी है मान मेरी बात.. आत्मा की बात सुन और उठा आवाज़ …
तोड़कर बेड़ियां तुझको आगे को बढ़ना है…..
हर महिला दिवस पर सिर्फ आहें न भरना है….
खुशियाँ तेरे दामन में होंगी अपार…
बस एक बार… बस एक बार ..
…….खुद से तू कर ले प्यार
-Ragini Garg