°•°[शब्द-सुमन “तात” को अर्पण]°•°
मेरे गहरे से गहरे ज़ख्मों को भी,
अक़्सर उनका वो छोटी-सी चोट बताना।
असहनिय वेदना से मेरा तड़पना,
तो उनका वो मन ही मन सिसक के रोना।
एक बार को माँ का चूक भी जाना,
पर उनका वो ख़ामोशियों की चीखें सुन लेना।
अक़्सर थक हार के मेरा निराशा ओढ़े बैंठना ,
तो उनका वो प्रोत्साहन वाला अलख जगाना।
भले लाखों तकलीफ़ों से हो सामना रोज़ाना,
पर उनका वो बेफ़िक्र-सा दिखाने को मुस्काना।
उनके जैसा त्यागी दुनियाँ में कोई और है कहाँ हृदय?
तभी तो मान्य है नभ को “पिता” समक्ष शिश नवाना।
-रेखा “मंजुलाहृदय”