४० कुंडलियाँ
(1.) ऐसी चली बयार
मानव दानव बन गया, ऐसी चली बयार।
चहूँ ओर आतंक की, मचती हाहाकार।
मचती हाहाकार, धर्म, मजहब को भूले।
बम, गोला, बारूद, इसी के दम पर फूले।
महावीर कविराय, बन रहे मानव दानव।
चला यदि यही दौर, बचेगा कैसे मानव।
***
(2.) कैसा यह दस्तूर
कैसा यह दस्तूर है, कैसा खेल अजीब।
सीधे साधे लोग ही, चढ़ते यहाँ सलीब।
चढ़ते यहाँ सलीब, जहर मिलता सच्चों को।
बुरे करें सब ऐश, कष्ट देते अच्छों को।
महावीर कविराय, बड़ा है सबसे पैसा।
इसके आगे टूट, चुका सच कैसा कैसा।
***
(3.) ममता ने संसार को
ममता ने संसार को, दिया प्रेम का रूप।
माँ के आँचल में खिली, सदा नेह की धूप।
सदा नेह की धूप, प्यार का ढंग निराला।
भूखी रहती और, बाँटती सदा निवाला।
महावीर कविराय, दिया जब दुःख दुनिया ने।
सिर पर हाथ सदैव, रखा माँ की ममता ने।
***
(4.) ईश्वर का यह शाप
ईश्वर का यह शाप क्यों, अब तक अप-टू-डेट।
हर युग में खाली रहा, निर्धन का ही पेट।
निर्धन का ही पेट, राम की लीला न्यारी।
सोये पीकर नीर, सड़क पर क्यों खुद्दारी।
महावीर कविराय, घाट का रहा न घर का।
भूखे पेट गरीब, न पूजन हो ईश्वर का।
***
(5.) पहचानो इस सत्य को
पहचानो इस सत्य को, मिट जायेगी साख।
जीवन दर्शन बस यही, इक मुट्ठी भर राख।
इक मुट्ठी भर राख, कहें सब ज्ञानी ध्यानी।
मगर आज भी सत्य, नहीं समझे अज्ञानी।
महावीर कविराय, बात बेशक मत मानो।
निकट खड़ी है मृत्यु, सत्य कड़वा पहचानो।
***
(6.) राधा-रानी कृष्ण की
राधा-रानी कृष्ण की, थी बचपन की मीत
मीरा ने भी सुन लिया, बंसी का संगीत
बंसी का संगीत, हरे सुध-बुध तन-मन की
मुरलीधर गोपाल, खबर तो लो जोगन की
महावीर कविराय, अमर यह प्रेम कहानी
मीरा बनी मिसाल, सुनो ओ राधा-रानी
***
(7.) सावन के बदरा घिरे
सावन के बदरा घिरे, सखी बिछावे नैन
रूप सलोना देखकर, साजन हैं बेचैन
साजन हैं बेचैन, भीग न जाये सजनी
ढलती जाये साँझ, बढे हरेक पल रजनी
महावीर कविराय, होश गुम हैं साजन के
मधुर मिलन के बीच, घिरे बदरा सावन के
***
(8.) मस्ती का त्यौहार
मस्ती का त्यौहार है, खिली बसंत बहार
फूलों की मकरंद से, सब पर चढ़ा ख़ुमार
सब पर चढ़ा ख़ुमार, आज है यारो होली
सब गाएं मधुमास, मित्रगण करें ठिठोली
महावीर कविराय, ख़ुशी तो दिल में बस्ती
निरोग जीवन हेतु, लाभदायक है मस्ती
***
(9.) आटा गीला हो गया
आटा गीला हो गया, क्या खाओगे लाल
बहुत तेज इस दौर में, महंगाई की चाल
महंगाई की चाल, सिसक रहे सभी निर्धन
कभी न भरता पेट, बना है शापित जीवन
महावीर कविराय, भूख बैरन ने काटा
जनमानस लाचार, हो गया गीला आटा
***
(10.) नेकी कर जूते मिलें
नेकी कर जूते मिलें, यह कलयुग की रीत
नफरत ही बाकी बची, भूल गए सब प्रीत
भूल गए सब प्रीत, गौण हैं रिश्ते-नाते
माया बनी प्रधान, उसे सब गले लगाते
महावीर कविराय, लाख कीजै अनदेखी
पर भूले से यार, कभी तो कर लो नेकी
***
(11.) कुण्डलिया के छंद में
कुण्डलिया के छंद में, कहता हूँ मैं बात
अंत समय तक ही चले, यह प्यारी सौगात
यह प्यारी सौगात, छंद यह सबसे न्यारा
दोहा-रोला एक, मिलाकर बनता प्यारा
महावीर कविराय, लगे सुर पायलिया के
अंतरमन में तार, बजे जब कुण्डलिया के
***
(12.) जिसमें सुर-लय-ताल है
जिसमें सुर-लय-ताल है, कुण्डलिया वह छंद
सबसे सहज-सरल यही, छह चरणों का बंद
छह चरणों का बंद, शुरू दोहे से होता
रोला का फिर रूप, चार चरणों को धोता
महावीर कविराय, गयेता अति है इसमें
हो अंतिम वह शब्द, शुरू करते हैं जिसमे
***
(13.) छह ऋतु बारह मास हैं
छह ऋतु बारह मास हैं, ग्रीष्म, शरद, बरसात
स्वच्छ रहे पर्यावरण, सुबह-शाम, दिन-रात
सुबह-शाम, दिन-रात, न कोई करे प्रदूषण
वसुंधरा अनमोल, मिला सुन्दर आभूषण
जिसमे हो आनंद, सुधा समान है वह ऋतु
महावीर कविराय, मिले ऐसी अब छह ऋतु
***
(14.) नदिया में जीवन बहे
नदिया में जीवन बहे, जल से सकल जहान
मोती बने न जल बिना, जीवन रहे न धान
जीवन रहे न धान, रहीमदास बोले थे
अच्छी है यह बात, भेद सच्चा खोले थे
महावीर कविराय, न कचरा कर दरिया में
जल की कीमत जान, बहे जीवन नदिया में
***
(15.) घिन लागे उल्टी करे
घिन लागे उल्टी करे, ठीक न होवे पित्त
ज़ख़्म दिए आतंक ने, दुखी देश का चित्त
दुखी देश का चित्त, क़त्ल रिश्तों का करते
कभी धर्म के नाम, कभी जाति-ज़हर भरते
महावीर कविराय, बात कड़वी पिन लागे
सिस्टम ज़िम्मेदार, आचरण से घिन लागे
***
(16.) बूढ़ा पीपल गांव का
बूढ़ा पीपल गांव का, रोता है दिन, रैन
शहरों के विस्तार से, उजड़ गया सुख, चैन
उजड़ गया सुख, चैन, कंकरीटों के जंगल
मचती भागम-भाग, कारखानों के दंगल
महावीर कविराय, बना है सोना, पीतल
युवा हुआ बरबाद, तड़पता बूढ़ा, पीपल
***
(17.) मायामृग भटका किये
माया मृग भटका किये, जब-जब मेरे पास
इच्छाओं में डूबकर, तब-तब रहा हतास
तब-तब रहा हतास, मिटी न मिटे यह तृष्णा
आदिम युग की प्यास, राधिका बिन ज्यों कृष्णा
महावीर कविराय, लगी झुरने यह काया
बूढ़ा हुआ शरीर, पर न मिटी मोह माया
***
(18.) तू-तू, मैं-मैं हो गई
तू-तू, मैं-मैं हो गई, बात बनी गंभीर
चलने लगे विवेक पर, लोभ-मोह के तीर
लोभ-मोह के तीर, पहेली तब क्या बूझे
जब न बचे विवेक, विकल्प न कोई सूझे
महावीर कविराय, ज़रा भी मत कर टैं-टैं
वरना होगी व्यर्थ, करी जो तू-तू, मैं-मैं
***
(19.) रब तो है अहसास भर
रब तो है अहसास भर, नहीं धूप या छाँव
वो तो घट-घट में बसा, नहीं हाथ वा पाँव
नहीं हाथ वा पाँव, निराकार उसे जानो
कह गए दयानन्द, बात वेदों की मानो
महावीर कविराय, पता यह सच सबको है
लाख करों इंकार, मगर जग में रब तो है
***
(20.) काटा पेड़ हरा-भरा
काटा पेड़ हरा-भरा, आँगन में दीवार
भाई-भाई लड़ रहे, मांग रहे अधिकार
मांग रहे अधिकार, धर्म संकट है भारी
रिश्ते-नाते गौण, गई सबकी मति मारी
महावीर कविराय, हो रहा सबको घाटा
लेकिन क्या उपचार, पेड खुद ही जो काटा
***
(21.) जो भी देखे प्यार से
जो भी देखे प्यार से, दिल उस पर कुर्बान
जग में है यह प्रेम ही, सब खुशियों की खान
सब खुशियों की खान, करो दिलबर की पूजा
है प्रभु का वह रूप, नहीं प्रेमी-सम दूजा
महावीर कविराय, तनिक अब वो भी देखे
दे दो उस पर जान, प्यार से जो भी देखे
***
(22.) सारी भाषा बोलियाँ
सारी भाषा बोलियाँ, विद्या का है रूप
विश्व में चहूँ ओर ही, खिली ज्ञान की धूप
खिली ज्ञान की धूप, रूप है इसका न्यारा
अक्षर ने हर छोर, किया ऐसा उजियारा
महावीर कविराय, विज्ञानं नहीं तमाशा
एक जगह अब देख, यंत्र में सारी-भाषा
***
(23.) जीवन हो बस देश हित
जीवन हो बस देश हित, सबका हो कल्याण
“महावीर” चारों तरफ, चलें प्यार के वाण
चलें प्यार के वाण, बने अच्छे संस्कारी
उत्तम शासन-तंत्र, बने अच्छे नर-नारी
देश-भक्त की राय, फूल-सा मन उपवन हो
हर विधि हो कल्याण, देश हित हर जीवन हो
***
(24.) कूके कोकिल बाग़ में
कूके कोकिल बाग़ में, नाचे सम्मुख मोर
मनोहरी पर्यावरण, आज बना चितचोर
आज बना चितचोर, पवन शीतल मनभावन
मृत्युलोक में मित्र, स्वर्ग-सा लगता जीवन
महावीर कविराय, युगल प्रेमी मन बहके
काश! डाल पे आज, ह्रदय कोकिल बन कूके
***
(25.) रंगों का त्यौहार है
रंगों का त्यौहार है, उड़ने लगा अबीर
प्रेम रंग गहरा चढ़े, उतरे न महावीर
उतरे न महावीर, सजन मारे पिचकारी
सजनी लिए गुलाल, खड़ी कबसे बेचारी
प्रेम रंग के बीच, खेल चले उमंगों का
जग में ऐसा पर्व, नहीं दूजा रंगों का
***
(26.) होंठों पर है रागनी
होंठों पर है रागनी, मन गाये मल्हार
बरसे यूँ बरसों बरस, मधुरिम-मधुर-फुहार
मधुरिम-मधुर-फुहार, प्रीत के राग-सुनाती
बहते पानी संग, गीत नदिया भी गाती
महावीर कविराय, ताल बंधी सांसों पर
जीवन के सुर सात, गुनगुनाते होंठों पर
***
(27.) पोथी-पत्री बाँचकर
पोथी-पत्री बाँचकर, होवे कौन सुजान
शब्द प्रेम के जो कहे, उसको ज्ञानी मान
उसको ज्ञानी मान, दिलों में घर कर जाता
मानव की क्या बात, जानवर स्नेह लुटाता
महावीर कविराय, बात है सारी थोथी
हिया न उपजे प्रेम, व्यर्थ है पत्री-पोथी
***
(28.) आई जिम्मेदारियाँ
आई जिम्मेदारियाँ, काँप गए नादान
है यह टेड़ी खीर पर, जो खाए बलवान
जो खाए बलवान, शक्ति उसको मिलती है
माने कभी न हार, मुक्ति उसको मिलती है
महावीर कविराय, काम मुश्किल है भाई
भाग गया वो वीर, मुसीबत जिस पर आई
***
(29.) मन में हाहाकार
मन में हाहाकार है, जीना क्यों बेकार
कर पैदा सच्ची लगन, तो जीवन साकार
तो जीवन साकार, व्यर्थ न जलाओ जी को
प्रीतम अगर कठोर, भूल जा तू भी पी को
महावीर कविराय, प्यार मत ढूंढों तन में
रंग चढ़ेगा और, लगन सच्ची यदि मन में
***
(30.) मरते-खपते कट गए
मरते-खपते कट गए, दुविधा में दिन, रैन
जीवन के दो पल बचे, ले ले अब तो चैन
ले ले अब तो चैन, साँस जाने कब उखड़े
कर कुछ अच्छे काम, छोड़ दे लफड़े-झगड़े
महावीर कविराय, राम की माला जपते
बहुत जिए हम मित्र, कल तलक मरते-खपते
***
(31.) आज़ादी पाई कहाँ
आज़ादी पाई कहाँ, देश बना अँगरेज़
क्यों न रंग देशी चढ़े, रो रहे रंगरेज़
रो रहे रंगरेज़, न पूछे बाबू कोई
निज भाषा बिन ज्ञान, व्यर्थ में दुर्गति होई
महावीर कविराय, चार सू है बरबादी
भाषा का अपमान, मिली कैसी आज़ादी
***
(32.) बात न कोई मानता
बात न कोई मानता, झूठ झाड़ते लोग
बेशर्मी से रात-दिन, दाँत फाड़ते लोग
दाँत फाड़ते लोग, कष्ट देके खुश रहते
इन लोगों को यार, बोझ धरती का कहते
महावीर कविराय, रूह भी इनकी सोई
भले कहो तुम लाख, मानता बात न कोई
***
(33.) राजनीति में आ गई
राजनीति में आ गई, महावीर अब खोट
नोट की चोट पे सभी, माँग रहे हैं वोट
माँग रहे हैं वोट, गिरी सबकी खुद्दारी
व्यवस्था हुई भ्रष्ट, दादागिरी है सारी
महावीर कविराय, गिरावट अर्थनीति में
गलत चयन आधार, खोट यूँ राजनीति में
***
(34.) खेतों में ज्यों आप ही
खेतों में ज्यों आप ही, फैली खरपतवार
इस धरा में ग़रीब यूँ, मिलते हैं सरकार
मिलते हैं सरकार, कहूँ क्या किस्मत खोटी
मुश्किल से दो जून, मिले ग़रीब को रोटी
महावीर कविराय, मिली हमें यह देह क्यों
हम हैं खरपतवार, उगे खुद खेतों में ज्यों
***
(35.) गल रही ओजोन परत
गल रही ओजोन परत, प्रगति बनी अभिशाप
वक्त अभी है चेतिए, पछतायेंगे आप
पछतायेंगे आप, साँस घुट्टी जाएगी
पृथ्वी होगी नष्ट, जान क्या रह पाएगी
महावीर कविराय, समय पर जाओ संभल
कीजै कुछ उपचार, ओजोन परत रही गल
***
(36.) अनपढ़ सदा दुखी रहा
अनपढ़ सदा दुखी रहा, कहे कवि महावीर
पढा-लिखा इंसान ही, लिखता है तक़दीर
लिखता है तक़दीर, अलिफ, बे को पहचानो
क, ख, ग को रखो याद, विदेशी भाषा जानो
धरती से ब्रह्माण्ड, ज़मानां पहुंचा पढ़-पढ़
जागो बरखुरदार, रहो न आज से अनपढ़
***
(37.) उत्साहित हैं गोपियाँ
उत्साहित हैं गोपियाँ, नाचे मन में मोर
रूप-रंग श्रृंगार का, कौन सखी चितचोर
कौन सखी चितचोर, पूछ रही हैं गोपियाँ
करती है हुड़दंग, ग्वाल-बाल की टोलियाँ
महावीर कविराय, कृष्ण जहाँ समाहित हैं
देह अलौकिक गंध, सभी जन उत्साहित हैं
***
(38.) गोरी इतराकर कहे
गोरी इतराकर कहे, प्रीतम मेरा चाँद
अजर-अमर आभा रहे, कभी पड़े ना मांद
कभी पड़े ना मांद, नज़र न लगाओ कोई
प्रीतम है मासूम, करीब न आओ कोई
महावीर कविराय, न कोई कर ले चोरी
तुझे छिपा लूँ चाँद, कहे इतराकर गोरी
***
(39.) क्यों पगले डरता यहाँ
क्यों पगले डरता यहाँ, काल सभी को खाय
यह तो गीता सार है, जो आए सो जाय
जो आए सो जाय, बात है बिलकुल सच्ची
कहें सभी विद्वान, साँस की डोरी कच्ची
महावीर कविराय, समय से पहले मरता
मौत है कटू सत्य, बता क्यों पगले डरता
***
(40.) पंछी बेशक कैद है
पंछी बेशक कैद है, पाँव पड़ी ज़ंजीर
लेकिन मन को बांधकर, कब रखा महावीर
कब रखा महावीर, नाप लेता जग पल में
जब भी जिया उदास, घूमता बीते कल में
कहे कवि खरे बोल, ह्रदय करता है धक-धक
दिल तो है आज़ाद, कैद हो पंछी बेशक
***