३५ टुकड़े अरमानों के ..
डोली सजी ना बरात आई ,
टुकड़ों में सजकर बिटिया की अर्थी आई ।
सपने देखे थे जिसके लिए जाने क्या क्या ,
देखकर जिसे एक चीख निकल आई ।
बड़े प्यार से संवारा जिसका जीवन रूपी चमन ,
आज उसे चिता के सुपुर्द करने की घड़ी आई ।
कभी कभी दिल हमसे पूछता है यह ,
क्या कमी रह गई थी हमारी परवरिश में ?
कोई कसर नहीं छोड़ी थी हमने उसे परवान चढ़ने में,
क्यों हम जन्म दाताओं पर ही भरोसा न कर पाई ।
सारी उम्र खर्च कर दी उसकी परवरिश में ,
सपने देखे थे बेशुमार उसके लाड़ प्यार में ,
और वो पल में हमारी सारी तपस्या और उपकारों पर
पानी फेर गई ।
हम माता पिता तो हो गए पराए और वोह एक अजनबी की दीवानी हो गई ।
वाह क्या खूब किया तुमने अपनी तकदीर का फैसला
गई थी सशरीर,पूरे आत्म विश्वास के साथ ,
मगर आज हमारे घर ३५ टुकड़ों में बंटकर,
हमारी अभागी बेटी हमारे घर आई ।