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22 May 2019 · 1 min read

२५ वीं वर्षगांठ गृहस्थ जीवन की

साथ रहेंगे सात जन्म तक ,वादा रहा यह अपना,।
बांधी तुम संग प्रीत की डोरी,याद आ रहा वह सपना।
याद है सारे स्वर्णिम पल क्षण, द्वारे बजी शहनाई।
बनकर दुल्हन तेरे संग जाना स्वागत और विदाई।
वो अटखेलियां करता यौवन, शादी और सगाई।
नैनों में अक्सर घूमता रहता,वह साजन का अंगना।
बांधी–
पतझड़ सावन तेरे संग सहना, सुख- दुःख की परछाई।
गुण- अवगुण अपना कर बढ़ना ,सीख तुम्हीं से पाई।
सचमुच देख के ऐसा लगता एक दूजे की परछाई।
दो फूलों से संवरा जीवन महका घर का अंगना।
बांधी–
जाने कब यौवन से चलकर आ पहुंचे प्रौढ़ पर।
गृहस्थाश्रम का हर पल सुन्दर अविस्मरणीय है हरेक पल।
बीते दिनों में झांक कर देखा खूबसूरत हर लम्हा।
रेखा-देव की जोड़ी अमर है कोई न रह पाए तन्हा।
अपना यौवन परिलक्षित है इन फूलों में पूर्ण होगा यह सपना।

Language: Hindi
Tag: गीत
1 Like · 428 Views
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