परो को खोल उड़ने को कहा था तुमसे
मानव जीवन अनमोल है, सीमित संसाधन भी अनमोल।
अब मज़े बाक़ी कहाँ इंसानियत के वास्ते।
*जीवन है मुस्कान (कुंडलिया)*
🥀 *गुरु चरणों की धूल*🥀
जूनियर झनक कैलाश अज्ञानी झाँसी
पर्वत को आसमान छूने के लिए
जैसा सोचा था वैसे ही मिला मुझे मे बेहतर की तलाश मे था और मुझ
मनुष्य एक बहुफलीय वृक्ष है, जैसे आप आम, अमरूद पहचानते और बुल
' पंकज उधास '
गायक - लेखक अजीत कुमार तलवार
जब रात बहुत होती है, तन्हाई में हम रोते हैं ,
अनुरक्ति की बूँदें
singh kunwar sarvendra vikram
हे ! भाग्य विधाता ,जग के रखवारे ।
जिस पर हँसी के फूल,कभी बिछ जाते थे
बहते पानी पे एक दरिया ने - संदीप ठाकुर